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वाजो॒ नु ते॒ शव॑सस्पा॒त्वन्त॑मु॒रुं दोधं॑ ध॒रुणं॑ देव रा॒यः। प॒दं न ता॒युर्गुहा॒ दधा॑नो म॒हो रा॒ये चि॒तय॒न्नत्रि॑मस्पः ॥५॥

English Transliteration

vājo nu te śavasas pātv antam uruṁ doghaṁ dharuṇaṁ deva rāyaḥ | padaṁ na tāyur guhā dadhāno maho rāye citayann atrim aspaḥ ||

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Pad Path

वाजः॑। नु। ते॒। शव॑सः। पा॒तु॒। अन्त॑म्। उ॒रुम्। दोध॑म्। ध॒रुण॑म्। दे॒व॒। रा॒यः। प॒दम्। न। ता॒युः। गुहा॑। दधा॑नः। म॒हः। रा॒ये। चि॒तय॑न्। अत्रि॑म्। अ॒स्प॒रित्य॑स्पः ॥५॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:15» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देव) विद्वन् (ते) आपका (वाजः) वेग (शवसः) बल के (उरुम्) बहुत (अन्तम्) अन्त की (दोधम्) तथा उत्तम पूर्ण करनेवाले और (रायः) धन के (धरुणम्) धारण करनेवाले की (नु) शीघ्र (पातु) रक्षा करे और (तायुः) चोर (पदम्) पैरों के चिह्न को (न) जैसे वैसे (महः) बड़े (राये) धन के लिये (गुहा) बुद्धि में सत्य को (दधानः) धारण करते और (अत्रिम्) पालन करनेवाले को (चितयन्) जनाते हुए आप सब को (अस्पः) प्रसन्न कीजिये ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे चोर, चोर के पाद के चिह्न को ढूँढ के ग्रहण करता है, वैसे ही आत्माओं में सत्य को धारण कर और कामना की पूर्ति करके सब को प्रसन्न करें ॥५॥ इस सूक्त में विद्वान् और अग्नि के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पन्द्रहवाँ सूक्त और सप्तम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे देव ! ते वाजः शवस उरुमन्तं दोधं रायो धरुणं नु पातु तायुः पदं न महो राये गुहा सत्यं दधानोऽत्रिं चितयन् सर्वास्त्वमस्पः ॥५॥

Word-Meaning: - (वाजः) वेगः (नु) सद्यः (ते) (शवसः) बलस्य (पातु) रक्षतु (अन्तम्) (उरुम्) बहुम् (दोधम्) प्रपूरकम् (धरुणम्) धर्त्तारम् (देव) (रायः) धनस्य (पदम्) पादचिह्नम् (न) इव (तायुः) चोरः (गुहा) बुद्धौ (दधानः) (महः) महते (राये) धनाय (चितयन्) ज्ञापयन् (अत्रिम्) पालकम् (अस्पः) प्रीणय ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा चोरश्चोरस्य पदमन्विष्य गृह्णाति तथैवाऽऽत्मसु सत्यं धृत्वा कामपूर्त्तिं विधाय सर्वान् प्रीणयन्तु ॥५॥ अत्र विद्वदग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चदशं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जसे चोराला चोराची पावले ओळखता येतात तसे आत्म्याने सत्य धारण करून इच्छापूर्ती करून सर्वांना प्रसन्न करावे. ॥ ५ ॥